जिले के वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी एवं कृषि विस्तार अधिकारियों तथा आत्मा परियोजना के अधिकारियों का सेवाकालीन प्रशिक्षण
सेवाकालीन प्रशिक्षण जिले के कृषि प्रसार एवं प्रशिक्षण केंद्र पवारखेडा में आयोजित किया गया. जिसमे जिले के वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी एवं कृषि विस्तार अधिकारियों तथा आत्मा परियोजना के अधिकारियों को कृषि विज्ञानं केंद्र गोविंदनगर के वैज्ञानिक डॉ. लवेश कुमार चौरसिया एवं डॉ. राजेंद्र पटैल द्वारा उददानिकी फसलों में संरक्षित खेती तथा जिले की प्रमुख फसलों में उगने वाले खरपतवारों की पहचान एवं उनके प्रबंधन पर प्रशिक्षण दिया गया. डॉ राजेंद्र पटैल ने प्रशिक्षण के दौरान बताया की खरपतवार फसलों के साथ कैसे प्रतियोगता करते हैं तथा किस प्रकार से फसलों को नुकसान पहुचाते है. खरपतवार फसल उत्पादन में लगभग 30-70% तक नुकसान करते हैं. खरीफ, रबी एवं जायद के मौसम में उगने वाले खरपतवारों की पहचान एवं उनके उचित प्रबंधन के बारे में बताया गया. डॉ पटैल द्वारा बताया गया कि खरपतवारनाशी तीन प्रकार से बुवाई के पहले, बुवाई के तुरंत बाद तथा फसल उगने के 15-20 दिन बाद उपयोग किये जाते हैं. कम अवधि वाली फसलों में जैसे – मूंग, उड़द आदि बुवाई से तुरंत बाद वाले खरपतवारनाशी उपयोग करना चाहिए जिससे फसल पर रसायन का प्रतिकूल प्रभाव ना पड़ें. साथ ही सोयाबीन, मक्का, गन्ना, धान, गेहूं फसलों में खरपतवारो से हानि को नगण्य करने के लिए प्री एवं पोस्ट दोनों खरपतवारनाशी का उपयोग करना चाहिए. वर्तमान समय में रसायनों पर निर्भरता कम करने के लिए किसान भाइयों को समन्वित खरपतवार प्रबंधन विधि का उपयोग करना चाहिए जिसमें कल्चरल, भौतिक, जैविक, मशीनीकृत एवं रासायनिक विधि का समावेश करके खरपतवार का नियंत्रण करना चाहिए जिससे भूमि एवं उत्पाद दोनों सुरक्षित रहे. डॉ. लवेश ने वर्तमान परिद्रश्य में उद्दयानिकी फसलों की उत्पादकता को संरक्षित खेती के माध्यम से बढाया जा सकता हैं. साथ ही बताया कि किसान भाई ड्रिप, मल्च तथा शेड नेट की सहायता से अपनी फसलों की उत्पादकता को बड़ा सकता हैं