धान के
प्रमुख रोग उनके लक्षण एवं नियंत्रण
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False Smut |
जिले की अधिकांश
हिस्से में धान की खेती की जाती है खरीफ के मौसम में धान प्रमुख फसल हैं कृषि
विज्ञानं केंद्र गोविंदनगर, नर्मदापुरम के वैज्ञानिकों ने बताया कि धान की फसल में रोग बीमारी मौसम के
उतार-चढ़ाव के दौरान होती है धान अभी गबोट अवस्था (Panical initiation) में हैं इस समय अधिकांश बीमारियों जैसे
false smut (हल्दी गांठ), nack blast (गर्दन तोड़), sheath blight आदि की समस्या आती हैं -
False smut (हल्दी गांठ) – फाल्स स्मट रोग (False
Smut Disease) को धान का आभासी कंडूआ रोग, लक्ष्मीनिया
रोग या हल्दी गांठ रोग के नाम से भी जाना जाता है. इससे लगभग 25 से 75 प्रतिशत का नुकसान देखा जा रहा है. फाल्स स्मट
रोग होने का मुख्य कारण कवक रोगज़नक़ यूस्टिलागिनो इडिया विरेन्स होता है.
लक्षण - इस रोग से फसलों को बचाने के लिए उसके लक्षण पहचानने बहुत जरूरी
है. सबसे पहले धान की बालियों पर छोटे, नारंगी रंग के दाने उभरने लगते हैं.
· दानों का रंग पीला हल्दी या काला
रंग का होने लगता है. जब भी दानों को हाथ लगाते हैं तब ये रंग हाथ में लग जाता है.
· दानों का रंग उड़ जाता है और इनका
वजन भी कम होने लगता है.
· जब पौधों में फूल आने लगते हैं तब
इस रोग के लक्षण दिखाई देते हैं.
· इन रोगों के कारण कई बार दानों की
जगह हरी-काली गेंदे बनने लगती है. इन्हें फाल्स स्मट बॉल्स या क्लैमाइडोस्पोर के
नाम से जाना जाता है.
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Sheath Blight |
नियंत्रण –
1.
रोग ग्रस्त
बालियों को निकाल देना चाहिए
2.
रोग प्रतिरोधी
किस्में लगानी चाहिए
3.
बीज उपचार करना
चाहिए
4.
बीमारी से ग्रसित
बीज को नहीं लगाना चाहिए
5.
फफूंदनाशी Tebuconazole 50%+ Trifloxystrobin 25% w/w WG (75 WG) की 100 ग्राम प्रति एकड के हिसाब से 200 लीटर पानी के साथ छिडकाव करें
6.
खेतों
को और खेतों की मेड़ों को खरपतवार से मुक्त रखने का प्रयास करें.
झुलसा रोग (sheath blight)
झुलसा एक फफूंद
जनित रोग है, जिसका रोग कारक
राइजोक्टोनिया सोलेनाई है. अधिक पैदावार देने वाली एवं अधिक उर्वरक उपभोग करने
वाली प्रजातियों के विकास से यह रोग धान के रोगों में अपना प्रमुख स्थान रखता है.
इसका इतना असर है कि उपज में 50 प्रतिशत तक नुकसान कर सकता
है.
लक्षण - मुख्य
खेत में ये लक्षण कल्ले बनने की अंतिम अवस्था में प्रकट होते हैं. लीफ शीथ पर जल
सतह के ऊपर से धब्बे बनने शुरू होते हैं. इन धब्बों की आकृति अनियमित तथा किनारा
गहरा भूरा व बीच का भाग हल्के रंग का होता है. पत्तियों पर घेरेदार धब्बे बनते
हैं. कई छोटे-छोटे धब्बे मिलकर बड़ा धब्बा बनाते हैं. इसके कारण शीथ,
तना, ध्वजा पत्ती पूर्ण रूप से ग्रसित हो जाती
है और पौधे मर जाते हैं. खेतों में यह रोग अगस्त एवं सितंबर में अधिक तीव्र दिखता
है. संक्रमित पौधों में बाली कम निकलती है तथा दाने भी नहीं बनते हैं.
नियंत्रण –
1.
रोग प्रतिरोधी
किस्में लगानी चाहिए
2.
बीज उपचार करना
चाहिए
3.
बीमारी से ग्रसित
बीज को नहीं लगाना चाहिए
4.
फफूंदनाशी azoxystrobin
+ difenoconazole की 150-200 ग्राम प्रति एकड के हिसाब से 200 लीटर पानी के साथ छिडकाव करें
5.
खेतों
को और खेतों की मेड़ों को खरपतवार से मुक्त रखने का प्रयास करें.
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