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कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर द्वारा बनखेड़ी ब्लॉक के ग्राम पंचायत के सचिवों को प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण दिया गया।

rahul
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कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर द्वारा बनखेड़ी ब्लॉक के ग्राम पंचायत के सचिवों को प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण दिया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन से कि गई  इस अवसर पर उन्नतशील कृषक एवं न्यास कार्यकर्ता पारथ जी, केंद्र के प्रभारी डॉ.  संजीव कुमार गर्ग, प्राकृतिक खेती प्रभारी डॉ.  देवीदास पटेल, कीट वैज्ञानिक ब्रजेश कुमार नामदेव, एग्रोनॉमिस्ट डॉ.  राजेंद्र पटेल जी , फार्म मैनेजर पंकज शर्मा एवं मृदा विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण कुमार सोलंकी उपस्थित रहे  

कार्यक्रम को आगे बढ़ते हुए डॉ गर्ग  ने  कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री पारथ पटेल जी को श्रीफल से सम्मानित किया, इसके बाद केंद्र के प्रभारी डॉ. गर्ग ने कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्राकृतिक खेती में किया जा रहे हैं सभी कार्यों का विस्तृत जानकारी प्रदान करते हुए कहा कि कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर को जैविक खेती आधारित कृषि विज्ञान केंद्र है कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र पर पूर्णतया प्राकृतिक विधि से फसल का उत्पादन किया जाता है एवं  किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति  जागरूक किया जाता।


प्रशिक्षण के समन्वयक डॉ आकांक्षा पांडे ने कहा कि ग्राम पंचायत के सचिव ग्रामीण किसानो से  सतत संपर्क में रहते हैं साथ ही वे स्वयं किसान  हैं इस कारण से उन्हें प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है  इसी को ध्यान मे रखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र गोविन्दनगर में सचिवों का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया।

प्रशिक्षण को आगे बढ़ाते हुए डॉ प्रवीण ने बताया की मृदा परिक्षण क्यों जरुरी है। मृदा मे पोषक तत्व प्रबंधन कैसी करें इस विषय पर विस्तृत जानकारी प्रदान की

बृजेश नामदेव ने मित्र कीटों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा की हमने अत्याधिक रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक का उपयोग कर धरती के मित्रो कीट जैसे केचुए को ख़त्म कर दिया है इसे बचाने के लिए प्राकृतिक खेती अति आवश्यक है साथ में बायो एजेंट निर्माण की भी चर्चा की गई  

अंतिम सत्र मे प्रक्षेत्र प्रबंधक पंकज शर्मा ने किसान बंधुओ को प्राकृतिक खेती की महत्व बताते हुए कहाँ की प्राकृतिक खेती को  देसी गाय से 30 एकड़ (12 हेक्टर) तक की खेती संभव हो सकती है। कृषि की इस पद्धति में फसल में किसी भी रासायनिक खाद, जैविक खाद या दवाइयों की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि इस पद्धति के तहत खेत में जीवाणुओं का कल्चर डाला जाता है तथा फसल में प्रयोग होने वाला कोई भी इनपुट बाजार से नहीं खरीदना पड़ता है। इस पद्धति में देसी गाय के गोबर और गोमूत्र से घर पर ही बहुत कम समय में ऐसे इनपुट तैयार किए जाते हैं जिनके प्रयोग से खेत में जीवाणु और केंचुओं की अप्रत्याशित वृद्धि होती है। यह जीवाणु वायुमंडल में विद्यमान 78 प्रतिशत नाइट्रोजन को पौधे की जड़ों और भूमि में स्थिर करते हैं तथा फसल के लिए दूसरे पोषक तत्वों की उपलब्धि भी बढ़ाते हैं।

प्राकृतिक खेती के इनपुट्स को सही क्रियाओं और समन्वय के साथ प्रयोग किया जाता है तो आरंभ से ही फसल की पूरी पैदावार मिलने लगती है। खास बात है कि यह दुनिया के किसी भी कोने में और हर परिस्थिति में संभव है, क्योंकि यह पद्धति जीवाणु और केंचुओं पर आधारित है और भूमि पर कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जहां पर सूक्ष्म जीवाणु विद्यमान न हों। प्राकृतिक कृषि में पहले ही वर्ष से जैविक कार्बन में अप्रत्याशित वृद्धि होने लगती है, पानी की बचत होती है और भूमि, जल तथा वातावरण का प्रदूषण नहीं होता है।

 प्राकृतिक खेती में कीट व बीमारियों का प्रकोप बहुत कम होता है। इनके नियंत्रण के लिए घर पर ही जो प्राकृतिक बायोफॉर्मूलेशन तैयार किए जाते हैं, वह हर प्रकार के कीट और बीमारियों को कंट्रोल करने में प्रभावी होते हैं। इससे फसल की बढ़वार और पैदावार में लाभ मिलता है। प्राकृतिक कृषि में रासायनिक और जैविक कृषि की तरह ग्लोबल वार्मिंग पैदा करने वाली गैसों का उत्सर्जन होने की संभावना बहुत ही कम है, बल्कि इस पद्धति में हर परिस्थिति में कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन को बढ़ावा मिलता है।

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