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आज की आवश्यकता जहर मुक्त भोजन हेतु पोषण वाटिका निर्माण

rahul
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                                        अब नहीं तो कब

 आज की आवश्यकता जहर मुक्त भोजन हेतु पोषण वाटिका निर्माण


पोषण वाटिका उस वाटिका को कहा जाता है जो घर के आस-पास स्थित हो और जिसे घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु फल ,सब्जियों के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाए। पोषण वाटिका पहले पारम्परिक खेती की आधारशिला थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे इसका महत्व कम हो गया है। वर्तमान में पोषण सुरक्षा हेतु इनके महत्व को एक बार फिर से पहचाना जा रहा है।  कुपोषण को कम करने के लिए पोषण वाटिका व्यापक रूप से एक उपाय के रूप में उपयोग की जा सकती हैं। पोषण वाटिका का निर्माण कभी भी शुरू किया जा सकता है। क्योंकि विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ वर्ष के विभिन्न समय में रोपण के लिए उपयुक्त होती हैं।

पोषण वाटिका के स्थान का चयन

Ø   पोषण वाटिका घर के नजदीक स्थित होनी चाहिए ताकि इसका रोजाना निरीक्षण किया जा सके व जंगली पशुओं से भी बचाया जा सके।

Ø    पानी के स्रोत के पास होना चाहिए ताकि सिंचाई की समस्या न हो।

Ø    वाटिका के स्थान पर धूप की उचित उपलब्धता हो ।

Ø    ऊँचे वृक्षों से दूर बनाना चाहिए जिससे इनकी छाया वाटिका में न पड़े।

Ø    अधिक वर्षा होने पर पानी की निकासी का उचित मार्ग होना चाहिए।

Ø   पोषण वाटिका मे रास्ता होना चाहिए जिससे निराई-गुड़ाई करते वक्त पौधों को नुकसान

 न हो।

Ø    पोषण वाटिका के लिए उचित एरिया का आकार विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि उपलब्ध स्थान, उद्देश्य, और उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं। हालांकि, आमतौर पर, एक छोटे से मध्यम आकार का पोषण वाटिका का आकार 50 वर्ग मीटर से लेकर 200 वर्ग मीटर तक हो सकता है। यह आकार प्राकृतिक वातावरण, प्रबंधन की क्षमता, और उद्देश्यों के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।

सब्जी फसलों की बुवाई

अधिकतर फसलों को बीज द्वारा उगाया जाता है अतः अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग करना चाहिए कुछ फसलें बीजों के अतिरिक्त अन्य तरीकों जैसे कटिंग, बडिंग, राइज़ोम, कंद, आदि से जल्दी पैदावार देती हैं।

 

बीज की बुवाई की सामान्यतः दो विधियों प्रयोग की जाती है

ü   सीधे बुवाई करना- इस विधि में बीज सीधे तैयार किए गए खेत की मिट्टी में डाल दिए जाते हैं सामान्यतः कठोर बीज व बड़े बीज वाली फसलों की बुवाई इस विधि से की जाती है।

ü   पौध तैयार करना - जिन फसलों के बीज बहुत छोटे होते हैं उनके पौध तैयार करके खेतों में रोपण किया जाता है।

बड़े बीजों को गहरा बोया जाता है जबकि छोटे बीज सतह के पास लगभग 1 सेमी. की गहराई तक ही बोए जाने चाहिए। सीधे बुवाई करने के पश्चात् बीच की पंक्तियों को मृदा व खाद के मिश्रण से ढक देना चाहिए व नमी को बनाए रखने के लिए जल का छिड़काव करना चाहिए यदि पौध से फसल तैयार करनी हो तो नर्सरी बेड या सीडलिंग ट्रे का प्रयोग कर इसमे बीजो की बुवाई करके पौध तैयार करनी चाहिए। पौध तैयार होने के बाद खेत में रोपाई के तुरन्त बाद इनमें पानी डालना चाहिए। बुबाई व रोपाई के बाद खेत का विशेष ध्यान रखना चाहिए व समय समय पर खरपतवार साफ करना चाहिए।

नर्सरी निर्माण

सब्जी फसलों की नर्सरी  तैयार करना भी एक महत्वपूर्ण कार्य है। सब्जियों की नर्सरी लगाकर पहले पौध तैयार की जाती है और उसके बाद खेत में रोपाई की जाती है, जैसे- टमाटर, शिमला मिर्च, मिर्च, बैगन, फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रोकली, प्याज, गाँठगोभी, आदि।

ü   नर्सरी के लिए क्यारी का चयन हमेशा ऊँची जगह पर करना चाहिए जिससे कि पानी का जमाव न हो।

ü   नर्सरी में धूप पड़ने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। यह अधिक छाया या वायु वेग वाली जगह नहीं होनी चाहिए।

ü   सिंचाई की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

 

सब्जी फसलों की नर्सरी के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी. जिसमें कार्बनिक पदार्थों की अच्छी मात्रा उपलब्ध हो, ज्यादा उपयुक्त रहती है। मिट्टी के बचे हुए थक्के, पत्थर और खरपतवार हटाकर जमीन को समतल करना चाहिए। इसके बाद 2 किलोग्राम अच्छे से सड़ी हुई खाद या 500 ग्राम वर्मीकम्पोस्ट प्रति वर्ग मीटर मिट्टी में मिला लेना चाहिए। अगर भारी मिट्टी हो तो प्रति वर्ग मीटर मिट्टी में 2-3 किलोग्राम बालू मिलाना चाहिए नर्सरी का क्षेत्रफल उत्पादन की आवश्यकता के अनुसार होता है इसकी लम्बाई 3-4 मीटर तक रखी जा सकती है किंतु चौड़ाई 1 मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। साथ ही दो नर्सरी के बीच में 1 फीट के रास्ते की जगह छोड़ी जाती है, जिससे खरपतवार निकाली जा सके और निराई-गुड़ाई आसानी से हो पाए। नर्सरी में बीज की बुवाई से पहले उन्हें रोग आदि से बचाने के लिए बीजों का उपचार करना भी जरूरी है। बीज के उपचार के लिए दो प्रकार की विधियाँ प्रयोग की जाती है-

ü   गर्म पानी उपचार विधि- इस विधि में गर्म पानी में जिसका तापमान 50°c हो, बीज को 15 से 20 मिनट के लिए भिगा दिया जाता है, इसके बाद छाया में सुखाकर बुवाई की जाती है।

ü   रसायन उपचार विधि-

ü    नर्सरी में अधिकतर सब्जी बीजों का उपचार करने के लिए कैप्टान थीरम या वैविस्टिन की 2 ग्राम मात्रा प्रति किग्रा बीज में मिलाई जाती है।

मुख्य खेत में पौध रोपण

पौध जब 10 से 15 सेमी. लम्बे हो जाऐ और 4 से 6 पत्तियाँ निकल आए तब वह मुख्य खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। टमाटर, बैंगन, मिर्च व गोभी वर्गीय सब्जियों में पौध तैयार होने में लगभग 4 से 6 सप्ताह लगते हैं, जबकि प्याज की पौध में 8 सप्ताह तक का समय लगता है। पौध निकालने के 24 घण्टे पहले नर्सरी में अच्छे से पानी छोड़ दें जिससे मिट्टी मुलायम हो जाये और पौध निकालते समय जड़ों को कम से कम नुकसान हो। पौध रोपण हमेशा शाम के समय ही करें और इसके तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर लें ताकि पौध आसानी से स्थापित हो जाये।

 

फसल

पौध से पौध की दूरी (सेमी.)

कतार से कतार की दूरी (सेमी.)

टमाटर

 

45-50 सेमी.

 

50-60 सेमी.

 

शिमला मिर्च

 

45-50 सेमी

 

50-60 सेमी.

 

खीरा

 

50 सेमी.

 

2. मी.

 

भिण्डी

15 सेमी

 

45 सेमी

 

बीन

 

15 सेमी

30-45 सेमी

 

फूल गोभी

 

45 रोगी

 

60 सेमी.

 

बन्द गोभी

 

45 रोगी

 

45 सेमी

 

मटर

 

5-75 सेमी

 

30 सेमी.

 

मूली

 

1 सेमी.

 

30 सेमी.

 

(चप्पन कद्दू)

समर स्कवेश

 

75 सेमी

 

1 मी.

 

गाजर

 

10 सेमी.

 

30 सेमी.

 

लहसुन

 

7.5 सेमी.

 

15 सेमी.

 

प्याज

10 सेमी.

 

15 सेमी.

 

सिंचाई

बीज के अंकुरण और पौधे के विकास के लिए पानी की नियमित आवश्यकता होती है। पौधों को कब और कितना पानी दिया जाए निम्न कारकों पर निर्भर करता है-

ü   मौसम गर्म व शुष्क मौसम में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

ü   मृदा का प्रकार- यदि मिट्टी रेतीली व ढीली हो तो अधिक बार लेकिन कम मात्रा में पानी देने की जरुरत होती है।

ü   सब्जियों के अनुसार कुछ फसलों की जड़ें गहरी होती हैं और कुछ की स्थली, जितनी अधिक गहरी जड़ हो उतनी कम बार सिंचाई करनी पड़ती है लेकिन जब भी करें पानी की अधिक मात्रा दें। कुछ सब्जी फसलों जैसे टमाटर, खीरा, शिमला मिर्च, आदि में फलों को सड़ने से बचाने तथा गुणवत्ता युक्त बीज की अधिक उपज लेने हेतु पौधों को बाँस की खपच्चों अथवा पतली लकड़ी की टेक द्वारा सहारा देना चाहिए जिससे शाखाओं को टूटने एवं गिरने से बचाया जा सके। पौध के निचले भाग में जमीन से फलमक्खी ट्रैप लगभग 15-20 सेमी. की ऊँचाई तक के पत्ते तोड़कर निकाल देने से मृदा जनित रोगों को रोका जा सकता है।

 

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार पोषण वाटिका में हमारी फसल के साथ सूर्य के प्रकाश, पोषक तत्व व जल के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं और उत्पादकता को कम करते हैं। अतः इसे नियंत्रित करने के लिए मिट्टी में निराई गुड़ाई करना आवश्यक हैं। पोषण वाटिका में जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण किया जाना चाहिए।

रोग व कीट प्रबंधन

पोषण वाटिका में जैविक विधि से कीट नियंत्रण किया जाना बेहतर होता है। निम्नलिखित विधिओं द्वारा कीट नियंत्रण किया जा सकता है।

ü    ट्राइकोग्रामा कार्ड

ü    प्रकाश प्रपंच (लाईट ट्रैप)

ü    फलमक्खी ट्रैप

ü    प्रकाश प्रपंच (लाईट ट्रैप)

ü    नीम द्वारा कीट प्रबंधन

 

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें:

डॉ. आकांक्षा पाण्डेय

(वैज्ञानिक पोषण एवं आहार)

कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर, नर्मदापुरम

+91 94066 23293

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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