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धान में ब्लास्ट रोग का प्रबंधन करे ऐसे

rahul
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कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर के वैज्ञानिक गण खरीफ फसलो का सतत निरिक्षण किसान बंधुओ के खेत में पहुचकर कर रहे है वर्तमान में धान में ब्लास्ट रोग का प्रकोप देखने को मिल रहा है इस हेतु कृषि विज्ञान केंद्र गोविन्दनगर के वैज्ञानिको ने  ब्लास्ट रोग प्रबंधन हेतु किसानो को बताया  की ब्लास्ट रोग एक प्रकार की फफूंदी संक्रमण रोग है यह रोग धान के पौधे के सभी हिस्सों को संक्रमित करता है, जिससे उपज में अत्यधिक नुकसान होता है, इसे "ब्लास्ट" रोग इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह पौधों में अचानक और तेज़ी से फैलता है, जिससे पौधे पूरी तरह सूख जाते हैं और उनकी उपज कम हो जाती है। जो कभी-कभी 70% तक पहुंच जाता है। प्रभावी प्रबंधन के लिए शीघ्र पता लगाना और पहचान करना महत्वपूर्ण है। इस रोग के लक्षण पौधे के सभी वायवीय भागों पर दिखाई देते हैं। परंतु सामान्य रूप से पत्तियां और पुष्पगुच्छ की ग्रीवा इस रोग से अधिक प्रभावित होती हैं। प्रारंभिक लक्षण पौधे की निचली पत्तियों पर धब्बे दिखाई देते हैं जब ये धब्बे बड़े हो जाते हैं तो ये धब्बे नाव अथवा आंख की जैसी आकृति के जैसे हो जाते हैं। इन धब्बों के किनारे भूरे रंग के तथा मध्य वाला भाग राख जैसे रंग का होता है। बाद में धब्बे आपस में मिलकर पौधे के सभी हरे भागों को ढक लेते हैं जिससे फसल जली हुई प्रतीत होती है। 

किसान भाइयों को रोग प्रबंधन हेतु सुझाव -

रोगरोधी क़िस्मों का चयन करना चाहिए। 

बीज का चयन रोगरहित फसल से करना चाहिए।

बीज को सदैव उपचारित करके ही बुवाई करना चाहिए। 

फसल की कटाई के बाद खेत में रोगी पौध अवशेषों एवं ठूठों इत्यादि को एकत्र करके नष्ट कर देना चाहिए।

अत्यधिक मात्रा में नत्रजन युक्त उर्वरको का उपयोग नहीं करना चाहिए 

फसल में रोग नियंत्रण हेतु आइसोप्रोथिओलेन 40% ई.सी. की 250 से 300 मिली. मात्रा का प्रति एकड़ में 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।


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